खत्म होती
शामों के साथ
वे तैयार थे
गहन निद्रा के लिए
खरीदे जा चुके थे
शाही सपने
और दावतों के
शाही पात्र
शफ़ कागज के चन्द
टुकड़े
थामे हाँथ
प्रदर्शित कर रहे थे
अपना पौरुष
जिनसे निचोड़ा जा सके
मजीठिया अंदाज में
धमनियों से रक्त का
एक एक कतरा
और साधे जा सके
बावरे से व्यग्र होते
लालच युक्त स्वार्थ
और साधी जा सकें
अतृप्त लिप्साएं
जो समय की आपाधापी में
पृष्ठ पर पुन:
उभर आई हैं
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