अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर श्रमगारों को समर्पित एक रचना -
वह लड़ लेगा !
प्रकृति के थपेड़ों ने
पाला है उसे
वह मोहताज नहीं किसी का
न ही गुलाम है किसी का
यह सच है
उसमे हौसलों की कमी नहीं है
उसके ललाट पर चमकती
श्वेद की बूंदे बता २हीं हैं
वह खोद सकता है
प्यास के लिए कुआ
दुह सकता है
भोजन के लिए घरती को
झुका सकता है आकाश को
अपने फौलादी इरादों से
वह तीर की तरह चीर सकता है
अंधड़ों को
क्योंकि संघर्ष ही उसकी सच्चाई है
आखिर वह एक मजदूर है
जो हर परिस्थिति में जीता है
अपने मौजू अन्दाज में ।
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