बरसात को बुलाने वाली बदली
रखती है सहेजकर
अपने आंचल में
जल की बूंदे
जैसे सहेजती है
एक करुणामयी माँ
अपने पनीले अनुभवों को
अपने अन्तर्मन मे
और लुटाती है सबके लिए
सहज भाव से
वत्सलता का सुधारस
मगर अफसोस !
अक्सर हम भूल जातें हैं
या यूँ कहें कि
हम विस्मृत कर देते हैं माँ का
अवदान और मातृत्व का भाव
बदली से विलग हुईं बूंदों की तरह
जो फिर कभी नहीं मिलती
अपनी जन्मदात्री बदली से।
प्रद्युम्न कुमार सिंह
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