देश घिरा हुआ है
संकट में
कुछ रहे खीस निपोर
चमगादड़ो सा
कुछ संकट का रोना रोते
कुछ जनमत बहुमत की
बातें करते
उपाय विहीन सुबकते
जग के नर नारी
दोष एक दूसरे पर मढ़ने में
व्यस्त हुए महाजन
कुछ सड़कों में लूटने को तैयार
कुछ तैनात हुए भक्षक बन
मालों गोदामों में
लूट रहे कुछ भय का राग
आलाप
बांह फैलाये कुबेर खड़े है
महामारी के स्वागत में
शामिल हैं उनके संगी बन
जननायक
जिसमें निभा रही
गणिकाएं अहं भूमिकाएं
बढ चढ़कर
मिलकर भटका रहे ध्यान हमारा
मौत के सौदागर
पस्त हुए हौसलों को
कन्धा देने को उत्सुक
अब भी खेल रहे जनभावों से
गंगारामों के उस्ताद जमूरे I
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