Tuesday, 12 September 2017

**** वे नहीं चूकते****

वे नही चूकते !
करने से अपना बखान
वे पकड़ते हैं बार बार
बाह्य कर्ण की भित्ति
और सिकोड़ते हैं
दूर तलक विस्तृत ललाट को
जैसे किसी ने कर दी हो
घर में शिकायत
इसीलिए ऊभन चूभन
के साथ
वे दिखते हैं चिन्तित
जिससे जान सकें लोग
उनकी कार्यशीलता
और उनकी लगन
जिसका परिणाम अभी तक
रहा है सिफर
हाव भावों की चुहुलबाजी द्वारा
वे दर्शाना चाहते हैं
फर्जी मज़बूरी
जिह्वा और वाणी के माध्यम से
वे सिद्ध कर देना चाहते हैं
अपने को बेकसूर
वे जता देना चाहते हैं
अभी भी नहीं भूलें हैं
अपनी कही हुई बातें
जिसकी प्रतिपूर्ति हेतु
वे अब भी हैं प्रयासरत
वे भांपते है
लबो की खामोशी
बनाया जा सके जिसको
खुद के बचाव का
कारगर हथियार
किन्तु वे भूल जाते है
खामोश आवाजे जब भी
मुखर होती हैं
बदल देती हैं जहान का
नक्शा
खो जाती है जिसमें
सियासत की बहुत सी
मगरूर सत्ताएं
और और आबाद हो जाती है
नवीन सभ्यताएं
और नवीन संभावनाएं ।

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