त्रिलोचन जी को समर्पित एक रचना
त्रिलोचन के लोचन से कल मैने देखा
उसी वेश में उसी देश में
भीख मांगता जर्जर स्याह तन
फौलादी सोच और आत्मविस्तार के साथ
अपने ही कुनबे से अलगाया ठुकाराया हुआ
टूटे मन के साथ
मठाधीशो के मठों से विरक्त
शेर सरीखा घायल भूखा प्यासा
उद्दीप्त नेत्र तप्त भाल
समय के झंझावतों से संघर्षरत
एक अपराजेय योद्धा
त्रिलोचन के लोचन से कल मैने देखा
रोक नही पाया खुद को आप
पूंछा जाकर पास
दद्दा मिलता है क्या ?
इस मुट्ठी भर दाने से
उसने मेरी ओर उठाकर आंख देखा
और जवाब प्रश्न का मेरे
कुछ यूं दिया
नहीं देखता पेट खाली
पाप और पुण्य का विश्लेषण
खाली पेट मात्र रोटी से भरता है
खुद का उत्तर मैने पाया
जीवन का सत्य
उसी में समाया
Sunday 20 August 2017
****त्रिलोचन के लोचन से कल मैने देखा****
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