Tuesday 1 August 2017

*****आशा की नव पौध*****

प्रपंचों में जो उगता है
छलछन्दों में जो ढलता है
नाक भौं में जो फर्क
समझता है
रौब औरों पर गठता है
शोषित दुर्बल संग
झगड़ता है
पाप पुण्य के
खेल खेलता है
डैनों के बिन उड़ता है
ऐसे मानी कलहंसो को
धूल चटाने आया हूं
बिन बूदों की बारिस में
उस प्रबल पुंज की
वेदी से
ध्वजा उखाड़ने
आया हूं !
जीवन के सन्देशों में
जीवन का राग बजाने
आया हूं
आपा की पगधोई में
जीवन बेल है जो बोई
वह बेल खिलाने
आया
सतयुग द्वापर त्रेता कलियुग
से भिन्न इक
युग नया बनाने
आया हूं
जीवन के घनघोर
वियावन में
आशा की नव पौध जमाने
आया हूं

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