Sunday, 20 August 2017

****गुलाबी साजिशें*****

ढाँपो खुद का
बहशीपन
कृषको श्रमिकों
और बच्चों से
रोको अब अपना
गत आगत का
अनर्गल ज्ञान
छोड़ो आयात और निर्यात के
लुभावने धन्धे की बात
पोतो उन तमाम
तश्वीरों को
जिनसे आती है बू
जाति धर्म और कुनबे की
घृणा और नफ़रत की
खत्म कर दो
उन दरीचों को
जिनसे रोशनी की जगह
फैलता है
कभी न खत्म होने वाला
अंधेरा
छीन ली जाती हैं
जिनसे जीने की
आजादी
और छीन ली जाती हैं बची हुई
तुम्हारी सांसे
आड़ में जिनकी
रची जाती हैं
तुम्हे खत्म करने की
गुलाबी साजिशें

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