आज भी हैं
उनके पास
कुछ मायावी जिन्न
जो समझते हैं
उनकी उंगलियों की भाषा
और होठों की
मुस्कान के शब्द
और तत्पर रहते हैं
परिन्दों से उड़ने के लिए
वे परखते हैं
समय समय पर शब्दों की
तीक्ष्णता और उनके प्रहार
जिससे दुरुस्त किया जा सके
प्रयोग से पूर्व
यद्यपि वे करते तयशुदा
समय में
निशाने के साथ संधान
और पा लेते हैं
कुछ थोथी उपलब्धियां
जिनका गाथाएं गाते हैं दामोदर बने
चारणवृन्द
खुश हो जिन्हे वितरित करते
बख्शीस में कुछ जागीरें
और वसूलते हैं समय समय पर
राजस्व की तयशुदा किश्ते
जिन्हे देकर लोग चुकता करते हैं
अपना कर्ज
इस तरह वे बने रहते हैं
पीढी दर पीढी
गुलाम
जिसे ढोने को विवश होती है
उनकी आने वाली पुश्तें ।
Wednesday, 24 April 2019
****मायावी जिन्न*****
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