Wednesday 31 July 2019

**** इस शाख से उस शाख तक*****

श्मशानों में ही नहीं रहते हैं मुर्दे
उनका कोई
निश्चित गाँव भी नहीं होता है
वे तो मिल जाते हैं
हर वक्त हर जगह
अलग अलग अनुपात में
क्योंकि मुर्दे केवल वे ही नहीं होते
जो जिन्दगी जीने के बाद
सहज़ मृत्यु को प्राप्त हो
श्मशान में रहने को बाध्य होते हैं
मुर्दे वे भी होते हैं
जो जिन्दा रहते हुए भी
हो रहे अन्याय के विरुद्ध
आवाज उठाने से कतराते हैं
और मुंह फेर लेते हैं ऐसे वाक्यों से
दिन ब दिन बढती जा रही है
ऐसे मुर्दो की संख्या
हमारे और तुम्हारे बीच
अमरबेल के बेल की तरह
इस शाख से उस शाख तक

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