Thursday 6 September 2018

******* यह कविता है*******

यह कविता है यारों  !
सच में
अमृत घोलती है
झूठ की पोल खोलती हैं
तारों रंग से
सजती और संवरती है
आकाश संग डोलती है
नीला पीला हरा और लाल
उसके संग मानों चार यार
भूल भुलैया जैसा उसका
घर आंगन
नदी की लहर सी बोलती है
भुज भुजंग संग उसका वैर
आम जनों में रस घोलती है
ये कविता है यारों
तथ्यों की अन्वेषी
सच की साथी
चेहरों से चेहरों को
खोलती है
अमृत रस घोलती
मेहनतकस मजदूरों की ये
संगनी
आग सी लपलपाती जिह्वा इसकी
धरती के पग चूमती है
जान सको तो जान लो
मर्म इसका धर्म इसका
यह कोई खैरात में मिलने वाली
वस्तु नही
नाको चने यह चबवाती है
पशुओं की भी
मनुज बनाती है
सच का हाथ पकड़
इत उत डोलती है

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