मेलों का अपना इतिहास रहा है
जो समय के साथ बनता
और बिंगड़ता रहा है
यादों के साथ शुरू होता है
बिछुड़न पर खत्म होता है
झूलों मिठाइयों के साथ
रंग जमाता है
और झूठ और लूट पर
खत्म होता है
खिलौनों संग उलझता है
स्मृतियों के आंगन में
नये चित्र सजते और संवरते है
ढोल नगारे की धुन में
थिरकते हैं
महावर लगे पांव
और डीजे संग झूमते हैं
आनन्द मनाते कदम
सत्य असत्य के बीच
कई सफेद चेहरों से
उतर जाता है उनका नकाब
क्योंकि मेला है जो मेलने से ही
बढ़ता और सुरक्षित होता है
यदि तुम्हे समझना है
मेले के रंग को
तो तुम्हे बनना होगा
मेले का ही एक अंग
और दिखना होगा मेले के
सरीखा चमकदार धोखा सा
Wednesday 12 September 2018
*****मेलो का इतिहास*******
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