Sunday, 2 September 2018

**** दूर ले जाता क्षितिज*****

दूर ले जाता क्षितिज
कोई उसे
ढूंढ रही जिसे
सुबह की धूप
गूंज रही
टनक टनक की ध्वनि
ओस बूंदों सी
पत्तों के ऊपर
टेढी मेढी तिरछी आड़ी
पगडंडियां
दूर तक ले जाती उसे
तम व्योम चीर
मुस्कान रश्मियों के साथ
हिम आच्छादित शिखरों पर
फूटती उमंगों की धवल रेख
दूर ले जाता क्षितिज
कोई उसे
गा रहा सुर में
आज भी सुरीला गीत कोई
नाद से आवाज तक
आज भी खोज रहा
कोई पथिक  
         प्रद्युम्न कुमार सिंह

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