चारों ओर मातम है
चालू मौत का खेल है
रैलियों में व्यस्त सुल्तान हैं
पल पल टूटती जा रहीं
अपनों की सांस हैं
स्तब्ध प्रजाजन हैं
धड़ल्ले से चल रहा
नफ़े नुकसान का कारोबार है
कीमत चुका रही
अबोध जनता है
समय के कार्णिको द्वारा
लिखे जा रहें मौत के दस्तावेज हैं
चल रहा झूठी सांत्वनाओं का
कुत्सित खेल है
और खुश जिम्मेदार लोग हैं
वे गिरा देते हैं अपनी आँखों से
रैलियों के बीच अश्कों के दो बूंद
निज दुःखों को भूलकर गदगद हो
चल पड़ते लोग हैं
संभालते हुए झण्डों का बोझ
सत्ता के विस्तार के लिए
राजा के साथ।
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