Monday, 19 April 2021

निःशब्द हूँ

निःशब्द हूँ
अचानक यूँ तुम्हारे चले जाने से
रंग बिरंगे फूलों से
इतराते थे अपनी शाखों पर
पर न जाने क्यों
तुम चले गये 
महकता हुआ आंगन
चहकता बचपन छोड़कर
सदा सदा के लिए

निःशब्द हूँ
यह कल की तो थी बात
जब तुमसे हुई थी 
फोन पर मेरी बात
और तुम हाँफ रहे थे
मेरे मना करने के बावजूद
तुम किये जा रहे थे 
अपने मन की बात
क्या तुम भूल गये?
वे सब बातें जो तुमने की थी मुझसे

निःशब्द हूँ
अचानक यूँ तुम्हारे चले जाने से
बतियाते थे तुम मुझसे  हमेशा
अपने दुःख और पीड़ाओं के बारे में
निश्चिंत होकर
तुम्हारे शब्दों में एक आक्रोश होता था
अपने मान और सम्मान के प्रति
जिसे रौंद दिया जाता था
कुछ जाहिल लोगों के द्वारा हमेशा

निःशब्द हूँ
तुम्हारी यातनाओं के साक्ष्यों को देखकर
जब किया जाता था तुम्हे
पग पग प्रताडित
और तुम काँप जाते थे भीतर तक
फिर भी प्रसन्नचित होकर
दुबारा से लग जाते थे 
कार्य की पूर्ति में
और सम्पन्न कर लौटते थे
विजयी मुस्कान के साथ

निःशब्द हूँ
तुम्हारी इहलीला की समाप्ति सुनकर
लोग पंक्तिबद्ध तो नहीं हो सके 
पर चलते रहेगें लगातार 
तुम्हारी ही खींची रेखाओं पर 
अनुगामियों की भाँति
जिससे हासिल किया जा सकेगा
एक दिन उनका विश्वास
जो हमेशा से करते रहे
तुम्हारी निष्ठा और ईमानदारी पर अविश्वास
एक आशा के साथ कि
तुम लौट आओगे फिर से
अपना मुकाम हासिल करके।

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