कोरोना भी
बाबू मोसाय हो गया है
जब चाहता है,
जहाँ चाहता है
आ धमकता है
और फैला देता है
डर का कभी न थमने वाला सिलसिला
क्योंकि वह जानता है
दहशत के अस्त्र का प्रभाव
होता है जो अचूक और अकाट्य
इसीलिए खात्मे की सभी
सम्भावनाओं के बीच
एक बार फिर से लौट आया है
बेखौफ होकर
उसका इस प्रकार से
पुनः लौट आना
देता है कई सम्भावनाओं जन्म
जो खोलती हैं
जिरह की बहुत सी गाँठों को
लगा दी गई थीं जो शेखी के नाम पर
हमारी और तुम्हारी
जुबानों पर जबरिया
और हम हो गये थे
उसके खौफ से एकदम मौन
आज फिर से लौट आया
बाबू मोशाय बन कर
कोहराम मचाने पूरे जहान
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