Monday, 21 October 2019

****अमराइयों के संग****

अमराइयों के संग
बसन्त झूम रहा
पिक शुक के
कलरव बीच
दिनमान दमकता
हूक सी उठ रही है
फिज़ाओ में
मौसम की बूंदाबांदी मे
चन्दन सा महक रहा
धरती अम्बर के रत्न सा
जलज दहक रहा
अरिदल के उर में
शूल सा सालता
छल दम्भ द्वेष पाखण्ड को
निज पौरूष से जीतता
अमराइयों के संग
कोकिल सा कुहुक रहा
जीवन की अभिलाषाओं में
चम्पक के फूलों सा
कविता के साथ ढुरक रहा
अनवरत
दर्द के अनछुए पहलुओं की
कुरदन से
अन्तर्मन उसका कसक रहा

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