कल की तरह ही
आज भी
जेहन में बनी हुई है
तरोताजा
श्वास प्रच्छवास के सापेक्ष
जीवन रस सी
आबाध उनकी याद
कलकल झरते झरने की तरह
समय के थपेड़ो से
अनछुई,
अनबुझी,
अनभिज्ञ,
और अंजान
अब भी खड़ी है
अपने उसी अनोखे
अंदाज में
समय के बीजशब्द सी
चाहारदीवारी से
लुकती, छिपती,
और अनजाने भय से
सहमी हुई
स्मृतियों के सहारे
आज भी बनी हुई है
उनकी याद
पक्ष के प्रतिपक्ष की तरह ।
धुनों में समाये
गीत की तरह
अजस्र रस के साथ
अनायास
उपस्थित हो जाती है
बुझे हुए दीपक की दीप्ति सी
दमकती
उनकी याद
आ जाती है
क्षण क्षण जीवन के पास
चांदनी में नहाती धरती की तरह
उम्मीदों के दरख्तों सी
बनाने हृदय के पास
घास फूस के कोटर
समय के असमान रूख के
खिलाफ
भरती हूंकार
सघन स्वप्नों के मध्य
दिलाती विश्वास
छा जाती है बदली सी
मानस के पास
बसती है उनकी याद
रात रानी की तरह
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