Saturday 12 March 2022

धुंध के पार

धुंध से पार देखना
और धुंध के पार देखना
अलग अलग होती हैं
दोनों बातें 
कुछ लोग देखतें हैं
धुंध से पार
और नहीं देख पाते
हकीकत को
और साधते रहते हैं
अपने तीर और कमान
एक असली योद्धा की भाँति
क्योंकि उन्हे पसन्द होती है
मौका परस्ती, एवं
स्वार्थ पोषित सत्ताएं
वे अकारण ही दे देते हैं
असहमतियों को वैमनस्यता का नाम
जिसके स्यापे को ढोने को
विवश होते हैं
बहुत से धरती के लाल
कुछ तुले हुए होते हैं
लोगों को झुकाने में
परन्तु नहीं टेकते कभी भी घुटने 
जलज जैसे लोग
चलते रहते हैं
केन की धार सरीखी
चट्टानी परिस्थितियों से 
टकराते हुए
क्योंकि न तो उन्हे पसन्द होता है
सिर झुकाकर मूक रहना
न ही असहमतियों से मुख मोड़ना
और न ही मरी हुई 
इच्छाओं के साथ जिन्दगी जीना

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