Friday 11 March 2022

किसी राम के लंका आने का

अक्सर !
अट्टहास की
गूंजती आवाजों के बीच
दब कर रह जाती हैं
मानवीय संवेदनाएं
तार तार होती
मान्यताएं
और चींखती हुई वेदनाएं
हाफते हुए
बेजान हो जाते हैं
खूबसूरत चेहरे
प्रभावी होने लगती 
भयावह अनगूंज
और फैल जाता है
एक अनाम डर
जिससे डरा हुआ आदमी
छुपा लेता है 
अपने भीतर 
हमेशा हमेशा के लिए
भय, आक्रोश, 
और घृणा से तिरहित 
अपने आप को
उसके सीने में दफ़न रहती है
मुक्ति की चाहत
वह इंतजार करता है
विभीषण की तरह
किसी राम के लंका में आने का

No comments:

Post a Comment