बिल्कुल !
अलग तरह की होती है
इतवार की सुबह
रोज की भागमभाग से मुक्त
यद्यपि इस दिन भी
सूरज निकलता है
फूल खिलते है
भौंरे गुनगुन करते हैं
फूलों पर तितलियाँ मड़राती है
पक्षी भी एक दरख्त से
दूसरे दरख्त तक
अपने स्वर निकालते हुए
सहजता से
आते और जाते हैं
मैं देखता हूँ जब भी
खिलखिलाते हुए
मासूम से बच्चों को
रोक नहीं पाता हूँ
खुद को
सोचने लगता हूँ
काशः कभी न खत्म हो
यह कल्पनाओं की सुबह
जो अभी अभी
ओस कणों से धुलकर
तरोताजा हो
खेलने को आई है
इन ठहठहाते बच्चों के साथ
जिसके आने की सूचना
नन्ही गिलहरियों के
छोटे छोटे बच्चे
उत्सुकता से दौड़ते हुए
खेलते हुए इन नौनिहालों को
देना चाहते हैं
इसीलिए वे लगातार
इधर से उधर
लगाए हुए हैं दौड़
पर बच्चे मस्त हैं
अपने आप में
वे ध्यान नहीं दे रहें हैं
उनकी ओर
पर मुझे खींच रहा है
उनका यह आकर्षण
जो मिलता जा रहा है
धीरे धीरे
सुबह की खिलती हुई धूप में
इतवार की भाँति
बिल्कुल अलग तरह से
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