वे पिता ही थे
कभी भी नही कराते थे
जो एहसास
अपने जर्जर होने का
अपनी विवाइयों के दर्द
कई रातो के जागने की
व्यथा का
क्योंकि वे देखना चाहते थे
हमेशा ही
बच्चों को खुश
वे उनकी ही खुशी में
ढूंढ लेते थे
खुद की खुशी
उनकी चहकन में
भूल जाते थे
जीवन की फीकी होती
खुशियों की तासीर
वे नहीं चाहते थे
कभी भी उनका दर्द
जान सके उनके बच्चे
और उनकी खुशियों के क्षणों में
बन जाये बाधक
इसीलिए वे छिपाते थे
हमेशा ही अपने बच्चों से
अपना दर्द
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