Thursday 9 May 2019

****इन दिनों*****


इन दिनों
नहीं दीखते पहाड़ों के
आसपास
जंगली जीवों के समूह
ना ही दिखाई जाती हैं
समाचार चैनलों में
उनकी क्रान्तिकारी आवाजें

इन दिनों
सत्ता के दलालों द्वारा
फोड़े जा रहें हैं
पहाड़ों के माथे
और बिगाड़ा जा रहा है
उनका स्वरूप
और साधे जा रहें हैं
कुत्सित स्वार्थ
जिन्हे पुनः साध पाना जीवन के साधने से भी हो गया है दुष्कर

इन दिनों
कलम के सिपाहियों द्वारा बेच दी गई हैं कलमें 
चित्रकारों ने प्रतिभा की धनी
कूंचियां
और रंगकर्मियों ने बेच दी है
रद्दी के भाव अभिनय की अपनी सहज वृत्तियां
जिनसे नही की जा सकतीं सत्य के अन्वेषण की सम्भावनाएं

इन दिनों
तिलिस्मी दास्तानों के
सिखाई जा रहीं हैं
हकीकत को प्रभावित करने
युक्तियां
और ठगे जा रहें जीवन मूल्य
जिन्हे चाहकर रोक पाना लगभग हो गया है असंभव

इन दिनों
बढ़ रही आतिशी तपिश
कोहरे और धुंध की हो रही है
पौ बारह
आशाओं की उम्मीदें भी
अब नही रोक सकतीं
ध्वस्त होते पहाड़ो का जीवन

इन दिनों
पहाड़ो से दरक रहें हैं
रिश्तों के परिदृश्य
आशाओं प्रत्यासाओं का गारा  भी
नहीं रख सकता जिन्हे महफूज
इन दिनों
विलुप्त हो रही तितलियां और छोटे कीट
बेदम हो रहा है
सम्पूर्ण वातावरण इन्फ्रारेजों के प्रभाव से
बावजूद इसके मौन घारण किये हुए हैं सारे पक्ष
और गढा जा रहा है
विकास कें नाम पर
जोरों से बिनाश का वितान

No comments:

Post a Comment