Friday, 14 July 2017

*****फिर से*****

मै जानता हूं
पेड़ों की शाखाएं
जो नये पत्तो संग
मनाती हैं उत्सव
मधुर मधुप की
थाप पर करती है
शास्त्रीय नृत्य
और उनके साथ ही
फिजाओ' में घोलती है
बसंत
खुशियों के बीच झूमते
वृक्ष नदी और पहाड़
आज भी परेशान हैं
टूटन और खत्म होती
प्रजातियों के
रिसते जख्मों से
यद्यपि कारवां निकल चुका है
बहुत आगे
किन्तु जख्म
हरे होने पर फिर से
आमादा हैं

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