दूर क्षितिज से
आ रही देखो छन छनकर
प्यारी प्यारी न्यारी न्यारी
धूप सुनहरी
विहँस रहे हैं पातों संग
हिलते डुलते फूलों के डण्ठल
गा रही है फुदक फुदक
फुलसुंघनी देखो
मधुरिम मधुरिम गीत
गुनगुन करते
झुण्डों संग भौरे आते
जैसे प्रात समय बच्चे
उठ खेलने को जाते
इतराते इठलाते
स्वयं रूठते,स्वयं ही मनते
करते नित अपने काम
सुबह सबेरे जब
स्वर्णिम पगड़ी बाँधे
सूरज आता
खिल उठते मानवों के चेहरे
लहरों से लहराते
पातों के संग
खुशियों से अतिशय भर
सरसिज मुस्काते
जैसे जैसे दिन चढ़ता जाता
सूरज नित नूतन
करतब दिखलाता
उत्साहों से पूरित
धरती,अम्बर के
अन्तरतम हो जाते
उनके गीतों के स्वर अनोखे
फैल जगत में जाते
No comments:
Post a Comment