तुम लिखो कविता
तोड़े जाते हुए नन्ही चिड़ियों के
मज़बूत डैनों के खिलाफ
तुम्हारे शब्द करे
मरहम-पट्टी
रिसते जख्मों की
तुम !
साधो छन्दों अलंकार से युक्त
सजीली भाषा के तीर
जिससे भेद सको
मृत भूख के ढहते किले
तुम्हारे नाद बहा दें
सतत वाहनी नदी सी
रसधार
हे कवि !
लिखो मिल सके जिससे
किसी बेसहारा असहाय को
दृढ आधार
तुम लिखो दर्द के खिलाफ
जिन्दा हो सके जिससे
मृत आंखों का पानी
रहनुमाई करती कविता
कवि !
तुम शब्दों की ध्वन्यात्मकता
के साथ
साधो ऐसे संधान
अभाव में जीने को मजबूर
बच्चाें की अनगूंज
तुम!
खोजो ऐसे हर्फ
पसीज सके जिससे कुलिश सा
कठोर कलेजा
तुम्हारे प्रत्येक शब्द
में हो एक कसक
कर्ज में डूबे
मजदूर व किसान के दर्द की
कवि ।
तुम्हारे शब्दों में हो एक ललकार
चेहरे की झुर्रियाँ के विरुद्ध
तुम्हारी खामोश लफ़्ज
भर दे
सूख चुके गालों में
सुर्ख लाल रंग
कवि ! स्मरण रहे
तुम्हारे शब्दों की
हुंकार जारी रहनी चाहिए
कविता के कविता होने तक ।