जैसे सूर्य नहीं होता है
कभी भी उजाले के विरुद्ध
चाँद भी नहीं होता
कभी भी प्रकाश से विमुख
वैसे ही यह भी सच है
हम नहीं मिले कभी भी
एक दूसरे से
न ही कभी कोई बात ही की
बावजूद इसके दिल में
आज भी मौजूद हैं
उसके गीतों की सुरीली आवाज
और उनकी गमक
जो गूंज पड़ते थे
अनायास ही धरती एवं आकाश के बीच
तेज रोशनी के सरीखे
जिसमें चुंधिया जाती थीं
आकाश की आँखे
पथ से बिचलित हो जाता था
स्वतः ही उसका जादुई सम्मोहन
जिससे उजागर हो जाता का
धरती और आकाश के
निस्सीम प्रेम का तिलस्मी अंदाज ।
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