Thursday, 28 January 2021

शुरुआत तुमने की

शुरुआत तुमने की थी
खत्म हम करेंगे
है दम तो ठोक ताल
आ जाओ मैदान में
हम धरती को हरा भरा करने वाले
नहीं डरा सकते हमे तुम 
बन्दूकों से 
गर गिरा कतरा खून का हमारे
तो समझ लेना
आ जायेगा जलजला
नहीं बचा पायेंगे तुझे
यमराज भी इस कहर से
चल पड़ा किसान यदि सरहद से
तो क्या होगा तुम्हारा
संगीनों के साये में सोने वालों
जो दे सकता है 
भूख प्यास को भी मात
तुम क्या उसे मारोगे
यदि बनाना जानते हैं हम
तो बिगाड़ना भी आता है हमे
हम वो नहीं डरा जिसे तुम
भेड़िये का डर दिखाकर
याद कर लो ज़रा फिर से 
अपना इतिहास पुराना
तानाशाहों के हुए हस्र कैसे
हो जायेगा एहसास तुम्हे इसका
कुछ स्वार्थ में लिपटे
कुछ भुजंगों के बल पर 
जो तुम भूल रहे हो
तो याद रखना तुम 
विषधर चाहे जितना हो विषधारी
धरतीपुत्र सदा से रौंदता रहा हैं
उसका फुफकार मारते फन को
जिस दिन आ गया अपनी रवानी पर
क्या आंधी,क्या तूफान, 
क्या समुद्र, क्या पहाड़
रोक पायेंगे उसे

Saturday, 23 January 2021

निस्सीम प्रेम

जैसे सूर्य नहीं होता है
कभी भी उजाले के विरुद्ध
चाँद भी नहीं होता
कभी भी प्रकाश से विमुख 
वैसे ही यह भी सच है
हम नहीं मिले कभी भी 
एक दूसरे से
न ही कभी कोई बात ही की
बावजूद इसके दिल में 
आज भी मौजूद हैं
उसके गीतों की सुरीली आवाज 
और उनकी गमक
जो गूंज पड़ते थे
अनायास ही धरती एवं आकाश के बीच
तेज रोशनी के सरीखे
जिसमें चुंधिया जाती थीं 
आकाश की आँखे
पथ से बिचलित हो जाता था
स्वतः ही उसका जादुई सम्मोहन
जिससे उजागर हो जाता का
धरती और आकाश के 
निस्सीम प्रेम का तिलस्मी अंदाज ।

Saturday, 2 January 2021

हिसाब

दैनिक दिनचर्या के बीच
भागमभाग से दूर
ज़रा तुम सोचो 
ठिठुरते दिनो के बारे में
जो प्रत्येक सुबह आ धमकते है
हमारे समक्ष
नई उमंगों के साथ
दुःख के बाद आये सुख की तरह

सर्द ठिठुरन से ठिठुरती 
वह कमेरा स्त्री
जो हर सुबह आकर बैठती है
अपने दुधमुहे बच्चे के साथ
हाथ में थामे हुए छीनी और हथौड़ी
कुछ बासी बचे हुए
भात एवं रोटियों का नाश्ता कर
तराश रही है 
अनगढ़ पत्थरों में देवत्व को

गुनगुनी धूप से होकर सुर्ख लाल
सुनती है रास्तों की पदचाप
और कुछ आवारा किस्म के 
लोगों की बदजुबानी
एवं तन का निरीक्षण करती
बदनियति में पूरी तरह से 
धंसी हुई निगाहें
बावजूद इसके वह जुटी हुई है
जहान को फिर से सुन्दर
अपने मन की तरह सुन्दर बनाने में

सर्द के कम्पन्न दे रहे थे उसे संत्रास
जिससे बचने के लिए 
नहीं लगा था वहाँ पर कोई अलाव
घंटियों से लगातार बज रहे थे
कम्पित उसके दाँत
जिन्हे शान्त करने में अक्षम था
दुशाले का ताप
मूकदर्शक बना देख रहा था
कस्बे का मुख्य चौराहा

दर्ज हो रहा समय के रजिस्टर में
बीते वर्ष का पूरा लेखा जोखा
जिसमे कहीं पर नहीं था जिक्र
उस मजदूरन का 
जिसने ले रखा था
दुनिया को खूबसूरत बनाने का व्रत
जुटाये हुए अपना पूरा उत्साह
शीघ्र खत्म करने को
बेताब था समय का कार्णिक
जबकि एक कवि जुटा हुआ था
दर्ज करने मे
समय का दर्दनाक हादसा
जिसके अधूरा रह जाता 
बीते हुए समय का हिसाब किताब I