Sunday, 15 March 2020

छुपे हुए हैं

छुपे हुए हैं
अभी भी कई मनसुख लाल 
तुम्हारी ओढी हुई 
खोल में
कर रहें हैं 
जो समय का इंतजार
ध्यान से खोजो उन्हे
मिल जायेंगे लिपटे हुए
चीलरों की तरह 
रिश्तों की दुहाई देते हुए
दिखेंगे तुम्हारे गर्म खून पीने में तत्पर
उन्होने बना लिए है
उन्होने खोज लिए आवरण की 
परतों में ही अपने लिए 
रहने के सुरक्षित स्थल
जिसमे सहायक बनी हुई है
तुम्हारी लाचारी
यद्यपि तुम भी नही हो खुश
इनकी सहभागिता से
बावजूद इसके वे कामयाब है
खुद के मुताबिक तुम्हे ढालने में 
परन्तु तुम्हे सन्तोष है 
परिवर्तित होते समय में
असंगत हो  चुकी
झूठी शान पर के बनाये रखने पर
जिसके हो चुके हो तुम आदी
और वे खुश हैं 
तुम्हारे चकनाचूर स्वप्नो के 
विखराव में भी
छुपने की जगहों में 
अपना स्थायित्त्व हाशिल करके
क्योंकि उन्हे मालूम हो चुकी है
तुम्हारी कमजोर पड़ती हुई
सामर्थ्य जिसे धराशायी होने में
कुछ दिन ही शेष रह गये हैं

Monday, 9 March 2020

*****खौफ के साये में दिल्ली****

आखिर क्यों ?
चुप रहती है दिल्ली
उदार दाराशिकोह को 
अपमानित कर
घुमाया जाता है जब
हाथी की नंगी पीठ पर बैठाकर.

आखिर क्यों ?
चुप रहती है दिल्ली
रक्त पिपासु
नादिर शाह मुस्कुराता है
जब रक्तरंजित लाशों के बीच 
खड़े होकर

आखिर क्यों ?
चुप रहती है दिल्ली
हिन्दुस्तान का लाल 
बन्दा बैरागी
जब कुर्बान हो जाता है 
देश के खातिर

आखिर क्यों ?
चुप रहती है दिल्ली
विद्रोह का नेतृत्व करने वाले
बहादुर शाह ज़फर को
जब कर लिया जाता है
देशद्रोह के जुर्म में 
उसी के पितामहों प्रपितामहों की 
कब्रो के पास से

आखिर कब तक ? 
चलता रहेगा यूँ ही
और खामोश बनी रहेगी दिल्ली
क्या कभी भी ?
हुंकार नहीं भरेगी दिल्ली 
या फिर सदा की भाँति
एक बार फिर से किसी आतताई के 
खौफ के साये में 
डरी सहमी दिल्ली
नतमस्तक बनी रहेगी मौन