सभ्य है
इसीलिए बर्बर हैं
असत्य को सत्य से
अधिक करते हैं
स्वीकार
इसीलिए
दिन बा दिन
उठता जा रहा है
भरोसा
सत्य और अहिंसा से
क्योंकि हमारी सहनशक्ति ने
बदल लिया है
अपना पाला
और जा टिकी है
असहनशीलता की शरण में
इसीलिए नफा नुकसान
उसे तुच्छ लगते हैं
उसे लगता है
उसके अतिरिक्त सभी
मूर्ख और डरपोक हैं
जिन्हे प्रतिवाद व प्रतिरोध से
लेना देना नहीं है
इसीलिए वे इतिहास को
बदलकर
बनाना चाहते हैं
भूगोल
जिसमें निरंकुशता
और आत्मश्लाधा
पार कर दे
आतंक की सारी हदें
और घोषित किया जा सके
उन्हे महानता का महन्त
जिससे प्रशस्त हो सके
उनके पूजे जाने का मार्ग
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