मुझे फ़ख्र है
मैं कभी नही बन सका
महानायक
भव्यता और भ्रम के
शानदार उपमानों से
घिरा हुआ
कथनी तथा करनी में
अन्तर के पैमाने तय
करता हुआ
रौब और दौव के साथ
चमचमाती कारों मे सवार
कैमरों के सामने
झूठी मुस्कान सहेजता हुआ
बल्कि मै लड़ता रहा
लगातार
संघर्षशील मनुष्य की
आवाज बनकर
अन्याय व अत्याचार के
विरुद्ध उद्घोष बन
यद्यपि नहीं दिला सका मैं
उत्पादकों को
उनकी लागत से
अधिक कीमत
और विफल रहा
आधी आबादी के संघर्ष को
सरोकारों तक पहुँचाने मे
फिर भी मुझे फ़ख्र है
मैं कभी नही बन सका
महानायक
जो आदमी होते हुए भी
हमेशा रहता हो
आदमियत की जद से
बाहर
बल्कि इसके विपरीत
मै लगा रहा हमेशा
जन भावनाओं के साथ
मन क्रम वचन से
प्रतिबद्ध योद्धा सरीखा
यद्यपि मुझे भुगतने पड़े
इसके गम्भीर परिणाम भी
परन्तु मैं खुश था
प्रकृति व परिस्थितियों के साथ
तदात्म स्थापित करते हुए
क्योंकि मेरे लिए
महानायकत्व से भी
महत्वपूर्ण थी
मनुष्यों की संवेदना
जो पहुँचती जा रही है
लगातार खात्मे की ओर
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