लड़की झांकती है
जब अपने एकान्त मे
उसे दिखाई पड़ती हैं
बहुत सी जानी पहिचानी
धूमिल सी रूहें
जिनमें वह खोजती है
अपनी ही खोई हुई रुह
और खो जाती है
अपने ही खोये वजूद में
वह बार बार करती है
प्रयत्न
अपने वजूद से निकलने का
फिर भी वह रहती है निकलने में
असफल
क्योंकि लड़की और उसका वजूद
मिलकर हो जाते है एक
जिनमें से एक को अलग करना
एक को खत्म कर देना है
Monday, 23 December 2019
****लड़की झांकती है****
सुनो गाँधी !
सुनों गाँधी ! नहीं भाता
बार बार इस प्रकार
प्रश्नों की जद में
हुम्हारा आना
पर दूर घटित होते घटनाक्रम
बार बार कुरेदते हैं
स्मृतियों को
कि कुछ लोग
आज भी तुले हुए हैं
तुम्हारे सत्य और अहिंसा को
मात देने में
इसके लिए तुम बनाये जा रहे हो
लगातार मोहरा
कोई चिपका हुआ है
तुम्हारे जीवन की झलकियों के साथ
और कोई अपने इरादों का
भुरभुरा चूर्ण धुरककर
उसमे अपनी विषाक्त नियति का
मिठास घोलकर
जुटा हुआ है साधने पर
अपना स्वार्थ
रक्ताभ अंचल में
कुनमनाती अहिंसा
आज भी देखती है
तुम्हारी अनुलंघनीय राह
सुनो गाँधी !
पहले से भी अधिक
प्रासांगिक हो गई है
तुम्हारे विचारों की परख की
और उनकी परख रखने वाले पारखी
जिनके डग भरने मात्र से
डगमगाने लगती थीं सत्ता
और उनकी राहें
सुनो गाँधी !
क्या फिर से आओगे ?
सत्य अहिंसा का पाठ पढाने
अपने देश में
Subscribe to:
Posts (Atom)