ठंड के संत्रास में भी
हँस रहा था
एक बूढा
दिख रहा था
टनाटन लोहे सा
मानों मौत से
जूझने आया हो
उसकी हँंसती आंखे
कुछ कह रहीं थी
मौन भाषा में
ठीक से सुन नहीं पाया
शायद उनका इशारा
संसार की बेरूखी
एवं स्वार्थलिप्सा की ओर था
मै कुछ पूँछता
उससे पूर्व ही
गड़ चुकीं थीं
मुझ पर उसकी आंखे
शायद वह पूँछना चाहता था
मेरे अतिरिक्त इस खुले
आसमान के नीचे
तुम कैसे ?
मैं झेप गया
और कुछ नहीं पूँछ सका
शायद मेरा झेपना ही
मेरे प्रश्न का जवाब था ।
Friday, 28 December 2018
******एक बूढ़ा******
Wednesday, 26 December 2018
*****सलीबों में कहां लिखा होता है*****
सलीबों में कहां
लिखा होता है
किसी का नाम
फिट बैठे जिस पर
उसी के नाम
यद्यपि बदलते रहे
समय के साथ
उनके नाम और काम
फिर भी कायम रहा रुतबा
कभी सूली,
कभी फांसी,
कभी डाई,
कभी ज़हर के नाम
टीसती रही वेदना
और वेदना का ज्वार
क्योंकि सलीब के नामों से
नहीं वेदना के अनेक नाम
फिर चाहे अमीर हो
या हो गरीब
स्त्री हो या हो पुरुष गम्भीर
बचपन हो मासूम
या बूढा अधीर
सलीबों में कहाँ
लिखा होता है
किसी का नाम
कोई चढकर ईसा कहलाता
कोई पीकर सुकरात होता
कोई देश के खातिर
हंसते हसते फंदा
गले लगाता
और निशां दूर तलक छोड़ जाता
क्योंकि सलीबों में कहाँ
लिखा होता है
किसी का नाम
फिट बैठे जिस पर उसी के नाम
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