परेशान थे बनवारी मास्टर
कल की तरह
आज भी आयेगा पटवारी
और झाड़ेगा अपनी पटवारीगीरी
जिसे समझना
न समझने के जैसा ही होगा
फिर भी!
सुनना तो पड़ेगा ही
मामला राजस्व से जुड़ा जो है
मुकम्मल समय के इंतजार में
आन्तरिक उधेड़बुन में व्यस्त
बनवारी मास्टर से
कैसे किस प्रकार के
तमाम सवाल आ आकर
कर रहे थे लगातार
चुहुलबाजी
परन्तु चुप थे बनवारी मास्टर
एक अंजाने भय से
क्योंकि उन्हे पता था
पटनारी का रवैया व ढर्रा
सड़िहल दूध पीने के बाद
अक्सर बहक जाता है
पटवारी
और चल जाती है उसकी कलम
इधर से उधर
इसीलिए परेशान थे
बनवारी मास्टर
क्योंकि उनके जैसों के द्वारा ही
बनते है बहुत से पटवारी
जो नाप दे देते हैं
कहीं का कहीं ।