साफ तौर पर
देखा जा सकता था
चेहरों पर
खिसकती जमीनों का
खौफ
धमाचौकड़ी के माध्यम से
किया जा रहा था
उसका भयावहता के मुआयना
शायद यह पहली बार था
जब भय के साये में
सांस लेने को मजबूर था
खौफ का मंजर ।
ललाट की तनी हुई नशों की
उभरी हुई रेखाएं
दे रही थीं स्पष्ट दिखाई
बात साफ थी
आइने की तरह
उजड़ चुकी थी
पुस्तैनी ख्वाबों की दुनिया
बसने से पूर्व ही
और वे विवश थे
बेचारे होकर
संदेशा साफ था
चूक चुकी थी
सियासतदान की सियासत
और गश खाकर
गिर चुके थे पैरोंकार
खिसकती जमीन का
मिजाज भांपकर
खामोश थी धरती,
चुप था अकाश
एवं स्तब्ध था जनसमूह
पर लगातार चिल्लाये जा रहे थे
भोंपू की ऊल जलूल
क्योंकि स्पष्ट था
जीत हार से
दूर खड़ा जनसैलाब
कर रहा था
जय पराजय से अलग
जज़्बातों से उबरने का उपाय
जो कर रहा था
उन्हे मोड़ने
सकारात्मक प्रयास
क्योंकि वह समझ चुका था
चन्दे से इकट्ठी
धनराशि को
चट करने में माहिर
दीमकों की हकीकत
जो प्रकट हो रही थी
चेहरों में आई
सिकन के रूप में
के रूप में